अक्सर रातों में, तन्हा हो जाता हूं,
अकेलेपन के साए में, मैं खो जाता हूं।
सन्नाटे की चादर ओढ़े, ये रातें चलती हैं,
और दिल की बातें, खामोशी में ढलती हैं।
चांदनी भी देखती, चुपके से मुझे,
सवाल करती, पर जवाब कहां दूं उसे।
सितारे भी पलकों पर, आंसू से चमकते हैं,
ख्वाब अधूरे, मेरी सांसों में बसते हैं।
यादों का समुंदर, लहरें उछालता है,
दिल के अंदर, एक तूफान पालता है।
पर हर सुबह, एक उम्मीद लाता है,
कि शायद कोई, इस तन्हाई को मिटाता है।
Gautam Raj